Monday, May 7, 2012
इंदौर की एक भीगी हुई शाम
वो अपनों की बातें, वो अपनों की ख़ूबू,
हमारी ही हिंदी, हमारी ही उर्दू।
यह शेर शमशेर बहादुर सिंह जी का है। उन्हीं के नाम से पढ़ा भी गया था। किंतु हमारे पत्रकार-मित्र शमशेर जी का नाम दर्ज करना भूल गए।
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