Thursday, July 21, 2011

नेह बोलियां

नेह भी अजीब होता है.!? जो समझ ले सूफ़ी हो जाता है और जो न समझे वो बावरा। कभी ऐसी ही एक बावरी का चेहरा बुना था। नासमझ बावरी। सोचा, चलो इसे नेह के मायने समझाऊं तो काग़ज़ पर चंद मासूम से मिस्रों की शक्ल उभर आई। एक नज़्म ने करवट ली और नींद से जाग कर बोली - 'चलो, अब जगाया है तो मुझे गुनगुनाओ भी.!'
मैं ठहरा निरा बेसुरा.! उस नज़्म को भला मैं क्या गुनगुनाता.? तो मेरे लिए ये मुश्किल हमेशा की तरह शुभा दीदी ने आसान कर दी। कमाल का गाया। जैसा वो सदा गाती हैं।
जब उन्होंने गाया तो मुझे आपके लिए अपना फ़र्ज़ याद आया। सोचा, आपसे उस गुनगुनाहट को बांटूं जिसने मुझे भी अपनी ख़ुमारी में ले रखा है।
फ़िलहाल यहां उस नज़्म को लफ़्ज़ों का चेहरा दे रहा हूं। ऑडियो क्लिप की खिड़की खोल कर शुभा दीदी की आवाज़ का ख़ुशबूदार झौंका भी आप जल्द ही महसूस कर पाएंगे। आमीन।

ओ री बावरी, समझा तो कर
नेह बोलियां।


चांद गगन में पूरा क्यूं है
पूनम का मुख उजला क्यूं है
क्यूं मिलता है सुब्ह से सूरज
शाम का चेहरा पीला क्यूं है
समझा तो कर.!


सुन तो ज़रा मीरा की तानें
क्या कहती हैं रोज़ अज़ानें
ख़ुशबू आख़िर,ख़ुशबू क्यूं है
धरती पर मैं और तू क्यूं हैं

समझा तो कर.!

भेद जिया के ऐसे वैसे
खोल दिए आंखों ने कैसे
कुछ भी नहीं तो फिर ये हया क्यूं
कुछ भी नहीं है, ऐसा कैसे
समझा तो कर.!

15 comments:

mridula pradhan said...

wah.behad khoobsurat likhe hain.....

शहरोज़ said...

भाई अश अश कर उठता हूँ. जभ भी पढता हूँ.....खुदा महफूज़ रखे तुझे हर बला से! यही दुआ है!

Narendra Vyas said...

वाह वाह ! बहुत खूब सम्मानीय आलोक जी,
ओ री बावरी, समझा तो कर
नेह बोलियां।
xxxxxxxxxx
नेह के अमूर्त संदेशों को क्या खूब साक्षात् खड़ा कर दिया आपने. जाने कितनी बार पढ़ गया...और ये क्रम अभी तक जारी है.
सम्मानिया आलोक जी ! पढ़कर मन बावरा हो मचल उठा, उस बावरी की खोज में निकल पड़ा. और फिर मेरी सबसे प्रिय शास्त्रीय गायिक परम सम्मानिया शुभा जी की आवाज़ के इंद्रजाल में मन खो जाना चाहता है..आशा है ये बेचनी अतिशीघ्र शांत होगी उनकी आवाज़ सुनकर...
आप दोनों को ही मेरा ह्रदय की गहराईयों से नमन और वंदन ! प्रणाम !

girjesh choudhary said...

kya kahe ab kehne ko kya reh gaya. speechless.

Manoshi Chatterjee मानोशी चटर्जी said...

वाह आलोक जी! इतने ख़ूबसूरत अल्फ़ाज़...और शुभा दीदी के इसे अपना स्वर देने के लिये भी आपको बधाई...

vattsala pandey said...

अलोक जी,कुछ पलों में जितना जाना,उससे भी ज्यादा
रचनाओं ने आपको जताया,आपके भीतर का संगीत देखकर भी आई और महसूस करके भी.आपने तो पूछने पर भी नहीं बताया मगर आपका सुर आपके अंदर की लय आपकी रचनाओं के साथ साथ आपमें स्वत प्रकट हैं.यही वे ईश्वर के उपहार है जो आपकी रचनाओं को नई ताजगी से युक्तकर हम तक पहुंचाते हैं.आपमें और दुष्यंत कुमार में कोई साम्य मुझे तो नज़र नहीं आता.केवल इसके की वे भी हिंदी गजल लिखते थे.एक रेशमी अहसास आपको सबसे अलग खड़ा करता है.जिसके साथ हम इतनी दूर तक जाते है कि वापस आने पर भी उससे अलग नहीं हो पातें.बावरी जैसा गीत आत्मा और मन के मध्य का तैरता बादल है जो हमें .....

पीयूष पाण्डे said...

शानदार ! जमे रहिए और ऑडियो क्लिप भी जल्द मुहैया कराइए ताकि नज़्म का सौ गुना अधिक आनंद आए।

Rachana said...

sunder geet hai .aapki soch achchhi hai subha ji ne gaya hai to charchand lag gaye
dhnyavad
rachana

Unknown said...

सुन तो ज़रा मीरा की तानें
क्या कहती हैं रोज़ अज़ानें

बेहद खूबसूरत लाइनें आलोक सर... शुभा जी की आवाज़ में ये और वज़नदार हो गयी होंगी.. अब तो म्यूज़िक के साथ सुनने की इच्छा हो गई है...

Hadi Javed said...

चांद गगन में पूरा क्यूं है
पूनम का मुख उजला क्यूं है
क्यूं मिलता है सुब्ह से सूरज
शाम का चेहरा पीला क्यूं है
समझा तो कर.!
बहुत खूबसूरत रचना

Udan Tashtari said...

वाह!! बहुत कोमल...नेह बोलियां...

कैसे न समझें इस कोमलता को...बहुत खूब आलोक भाई!!!

सुभाष नीरव said...

वाह आलोक जी ! बहुत खूबसूरत पंक्तियां कही हैं… अब तो शुभा जी के स्वर में भी सुनने को मन मचल रहा है…ज्याद न तरसाओ और ओडियो क्लिप भी जल्द ही दे दो…

निर्मला कपिला said...

बहुत सुन्दर। आडिओ क्लिप देते तो और भी मधुर लगती। शुभकामनायें।

Dr. Manish Kumar Mishra said...

प्रिय हिंदी ब्लॉगर बंधुओं ,
आप को सूचित करते हुवे हर्ष हो रहा है क़ि आगामी शैक्षणिक वर्ष २०११-२०१२ के दिसम्बर माह में ०९--१० दिसम्बर (शुक्रवार -शनिवार ) को ''हिंदी ब्लागिंग : स्वरूप, व्याप्ति और संभावनाएं '' इस विषय पर दो दिवशीय राष्ट्रीय संगोष्ठी आयोजित की जा रही है. विश्विद्यालय अनुदान आयोग द्वारा इस संगोष्ठी को संपोषित किया जा सके इस सन्दर्भ में औपचारिकतायें पूरी की जा चुकी हैं. के.एम्. अग्रवाल महाविद्यालय के हिंदी विभाग द्वारा आयोजन की जिम्मेदारी ली गयी है. महाविद्यालय के प्रबन्धन समिति ने संभावित संगोष्ठी के पूरे खर्च को उठाने की जिम्मेदारी ली है. यदि किसी कारणवश कतिपय संस्थानों से आर्थिक मदद नहीं मिल पाई तो भी यह आयोजन महाविद्यालय अपने खर्च पर करेगा.

संगोष्ठी की तारीख भी निश्चित हो गई है (०९ -१० दिसम्बर२०११ ) संगोष्ठी में आप की सक्रीय सहभागिता जरूरी है. दरअसल संगोष्ठी के दिन उदघाटन समारोह में हिंदी ब्लागगिंग पर एक पुस्तक के लोकार्पण क़ी योजना भी है. आप लोगों द्वारा भेजे गए आलेखों को ही पुस्तकाकार रूप में प्रकाशित किया जायेगा . आप सभी से अनुरोध है क़ि आप अपने आलेख जल्द से जल्द भेजने क़ी कृपा करें . आलेख भेजने की अंतिम तारीख २५ सितम्बर २०११ है. मूल विषय है-''हिंदी ब्लागिंग: स्वरूप,व्याप्ति और संभावनाएं ''
आप इस मूल विषय से जुड़कर अपनी सुविधा के अनुसार उप विषय चुन सकते हैं

CHITRANSH KHARE said...

aapki taarif kin alfaazon me karoon samandar ki gahrai ko kisne naapa hai
chitransh khare
www.chitranshkhare2.blogspot.com