Wednesday, April 1, 2009

अपने सपनों का एक हिस्सा...

आज आपसे अपने सपने का एक हिस्सा बांट रहा हूं। सपना था कभी जगजीत जी गुनगुना दें और मेरे गीत भी अमर हो जाएं। चंद रोज़ पहले बात हुई थी कि...

मंज़िलें बेगानी हो सकती हैं, और रास्ता मुश्किल। लेकिन दिल में हौसला हो, जुनूं की इंतेहा हो तो फ़ासिले ख़ुद सिमटने लगते हैं। ज़मीन, बड़े अब्बा ग़ालिब ने अता की थी और लफ़्ज़ विरासत में मिले थे, सो कहीं जाकर ये ग़ज़ल हुई थी। कोई पंद्रह बरस पहले। आज आपसे बांट रहा हूं।

मंज़िलें क्या हैं रास्ता क्या है,
हौसला हो तो फ़ासिला क्या है।

वो सज़ा दे के दूर जा बैठा,
किससे पूछूं मेरी ख़ता क्या है।

जब भी चाहेगा छीन लेगा वो,
सब उसी का है आपका क्या है।

तुम हमारे क़रीब बैठे हो,
अब दवा कैसी, अब दुआ क्या है।

चांदनी आज किसी लिए नम है,
चांद की आंख में चुभा क्या है।

आज ये ग़ज़ल अपने मुक़द्दर पर इतराने लगी है। अमर जो हो गई है। ग़ज़ल के सरतार जगजीत सिंह जी ने इसे अपने नए एलबम इंतेहा में अपनी आवाज़ की रौशनी से नहला दिया है। और वीडियो में मुझे अपने साथ टहला लिया है। सो आज आपसे अपना वही सपना बांट रहा हूं।





आपका ही आलोक

32 comments:

नीरज गोस्वामी said...

जब भी चाहेगा छीन लेगा वो,
सब उसी का है आपका क्या है।

वाह...जब ग़ज़ल चचा ग़ालिब की ज़मीन पर लिखी गयी हो और वो भी इस कदर खूबसूरत...तो जगजीत सिंह जी क्यूँ कर न उसे गाना चाहेंगे? हम जैसों के लिए तो ये दोहरी ख़ुशी वाला मामला है क्यूँ की हम दीवाने हैं ...आप के अशआर और जगजीत जी की आवाज़ के...जानकारी का और इस लाजवाब ग़ज़ल पढ़वाने का शुक्रिया....
नीरज

MANVINDER BHIMBER said...

तुम हमारे क़रीब बैठे हो,
अब दवा कैसी, अब दुआ क्या है।

चांदनी आज किसी लिए नम है,
चांद की आंख में चुभा क्या है।

तुम हमारे क़रीब बैठे हो,
अब दवा कैसी, अब दुआ क्या है।
लाजवाब ग़ज़ल पढ़वाने का शुक्रिया....

sanjay sharma said...

जब सपने का हिस्सा इतना खूबसूरत और दिलकश है तो पूरा सपना कितना हसीन होगा..ख़ैर सपना सच हो गया..ख्वाब की ताबीर हो गई..इससे बढ़कर और क्या खुशी हो सकती है..आलोक भाई, ख्वाबों को ज़मीन मिल जाए.. और वो भी मिर्ज़ा नौशा की.. उस ज़मीन पर दिव्य आलोक से दमकती महकती इमारत सर उठाये तो सोने में खुशबू उतरते देर नहीं लगती... वाह..वाह.. जय हो...

संगीता पुरी said...

बहुत बढिया पोस्‍ट ।

akanksha said...

आपके सपने के लिए ढेर सारी बधाई

गौतम राजऋषि said...

अब इससे बढ़के खुशी हमारे लिये क्या हो सकती है कि हमारे प्रिय शायर की गज़ल को हमारे प्रिय गज़ल-गाय्क अपनी आवाज़ दे ररहे हैं...

बधाई

Manoshi Chatterjee मानोशी चटर्जी said...

आपको अनेकों बधाइयाँ। काश हमारे भी ऐसे कुछ ख़्वाब पूरे हो जायें...जगजीत सिंह की आवाज़ के दीवने तो जाने कितने हैं...

asha mishra said...

bhagwan kare aapki har acchi manokamana isi tarah puri hoti rahe...aameen

पीयूष पाण्डे said...

मुबारक हो आलोक जी,
ढेरों बधाइयां.....
हां...अब 'इंतेहा' खरीदने में धन खर्च जरुर करना पड़ेगा.....

DUSHYANT said...

दिल से बधाई और दुआ ही दूंगा उस शायर को जिसे कथाकार के रूप में जाना..
शायर से फिर तारुफ़ हुआ..
फिर एक हमज़ुबां दोस्त और भाई पाया...
ऐसे आलोक के लिए बेहतरीन जिन्दगी और उम्दा लेखन के बेशुमार दुआएं

Anonymous said...

http://music.cooltoad.com/music/search.php?PHPSESSID=277dca8ff63df8a808eda0c0480c499a&TITLE=jagjit+inteha


Nice Album....jagjit Singh's voice still have jaadu....

अविनाश वाचस्पति said...

बधाई हो
अब आपके आलोक की तरह
शब्‍द भी गूंजेंगे चहुं लोक

kshitij said...

चांदनी आज किसलिए नम है,
चांद की आंख में चुभा क्या है..

नीयत अच्छी हो...सोच अच्छी हो...लफ़्ज अच्छे गज़ल अच्छी हो ..तो जगजीत सिंह क्या कोई भी फ़नकार नज़र पड़ने पर चुन लेते हैं.....ईश्वर करे...आपकी और भी रचनाएं लोगों को पसंद आ

पंकज सुबीर said...

आलोक जी सबसे पहले तो ये कि आप उस कद के शायर हैं कि जो गायक आपको गायेगा उसके लिये गर्व की बात होगी । दूसरा ये कि ''घर मे झीने झीने रिश्‍ते मैंने राज उधड़ते देखे, चुपके चुपके कर देती है जाने कब तुरपाई अम्‍मा'' जैसे शेर लिखने वाला शायर किसी के गा देने से महान नही होता । मैं जगजीत सिंह जी का भी प्रशंसक हूं और आपका भी किन्‍तु आपकी कलम का उनसे जियादह हूं । वास्‍तव में जगजीत सिंह खुद ही आपक ग़जलों को गाने में देर कर गये । मेरे लिये ये बड़ी बात है कि आप सीहोर के पास के ही है भेलसा दो ही चीजों के लिये अब मशहूर है एक भेलसे की तोप और दूसरे आप । रही बात उस एल्‍बम इन्‍तेहा की ते उसे मैंने पूरा सुना है और आपकी ग़ज़ल मंजिलें क्‍या हैं रास्‍ता क्‍या है को छोड़ दें तो जगजीत जी का ग़ज़ल चयन बहुत ही कमजोर रहा है । विशेषकर जिस ग़जल से एल्‍बम शुरू होता है इंतेहा आज इश्‍क की कर दी वो तो बहुत ही आम सी और साधारण ग़ज़ल है । आपकी ग़ज़ल हमेशा की तरह संवेदना से भरपूर है । फिर कहूंगा कि आलोक श्रीवास्‍तव की ग़ज़लें किसी गजल गायक की मोहताज नहीं है क्‍योंकि वो लोक की ग़ज़लें हैं वो मास की ग़ज़लें हैं उन्‍हें तो आम ही गुनगुनाता है । और हां एक बात भास्‍कर की मधुरिमा में आपक केलीग्राफी तो अभी भी दिल में बसी है । अभी उस दिन श्री पवन जैन साहब से बात हो रही थी आपके बारे में श्री जैन भी आपके बड़े प्रशंसक हैं । जगजीत जी द्वारा ग़ज़ल गाने पर बधाई आपको नहीं दूंगा हां कभी दे पाया तो जगजीत जी को दूंगा कि आपने एक अच्‍छे शायर की ग़ज़ल को गाया ।

"अर्श" said...

AALOK JI NAMASKAAR,
AB AAPKE GAZALGOEE KE KYA KAHANE ... BAHOT HI ACHHA LAGAA EK HAMAARE PASANDIDA SHYAAR AUR UPAR SE PASANDIDA GAAYAK KHUB JAMEGI YE BAAT ... DHERO BADHAAYEE AAPKO..


ARSH

योगेन्द्र मौदगिल said...

आलोक जी, बधाई स्वीकारें इस खूबसूरत ग़ज़ल के लिये...

Manish Kumar said...

Waah itna bada sapna aakhir sach ho gaya. Waqai badi khushi ki baat hai. Jal hi sunte hain jagjit ji ki aawaz mein aapki ye ghazal

विवेक भटनागर said...

इस ग़ज़ल को जगजीत साहब के सुर मिले, अच्छा है. हालाँकि ये ग़ज़ल किसी चीज़ की मोहताज नहीं.

Renu goel said...

आज ही मैने जगजीत जी का नया आल्बम इंतहा
खरीदा और सुना ....पर अभी पता चला कि' मंज़िलें
क्या है रास्ता क्या है ' के लेखक के ब्लॉग पर हूँ...
बहुत अच्छा लगा ...जगजीत सिंग जी की प्रशंसक
होने के कारण इस ब्लॉग पर आई ....फिर आपकी ग़ज़ल
पढ़कर मज़ा आया ....आपकी मुराद पूरी होने पर आपको बधाई....

Anonymous said...

तुम्हारी खुशियों के लिए दुआ मे उठते हैं हाथ मेरे
बिजलियों के लिए रहने दो मेरा घर अभी ....
अच्छी ग़ज़ल और वो भी जगजीत जी की आवाज़
मे .....मुबारक....

गिरिजेश.. said...

आलोक भाई,
'इंतेहा' देख और सुन कर इंतेहाई ख़ुशी हुई। जगजीत साहब के साथ काम करना सचमुच बड़ी बात है। ढेरों बधाइयां। सबसे पहले आपकी ही ग़ज़ल पर आते हैं। वैसे तो ये ग़ज़ल शायर आलोक श्रीवास्तव के स्टैंडर्ड की कहीं से नुमाइंदगी नहीं करती, फिर भी, इसमें मुझे जो शेर अच्छे लगे-

वो सज़ा देके दूर जा बैठा
किससे पूछूं मेरी ख़ता क्या है..
जब भी चाहेगा छीन लेगा वो
सब उसी का है आपका क्या है..
चांदनी आज किसलिए नम है
चांद की आंख में चुभा क्या है..

कंपोजीशन कुछ खास नहीं है। जगजीत सिंह जी ने धुन और रिदम में कुछ नया नहीं किया है। हां, शुरू में वायलिन कोरस बहुत मधुर लगता है। 'हज़ार राहें, मुड़के देखीं' की याद दिलाता है। वीडियो काफी कंटेंपररी और मॉडर्न है- सानिया मिर्ज़ा, एन एन मित्तल जैसे चेहरे- अच्छा प्रयोग है। वीडियो में आपको तसल्ली से बैठकर लिखते देखकर दुआ निकली- ऊपरवाला आपको शेर-ओ-सुख़न के लिए सचमुद ऐसी ही फ़ुर्सत अता फ़रमाए। आमीन :-)
*********
अलबम के कुछ और ग़ज़लों के बारे में--
पहली ग़ज़ल सुनकर लगा कि जगजीत साहब चुक गए हैं। सब कुछ बार-बार सुना सा, घिसा-घिसा सा लगता है।
'ख़ूब निभेगी हम दोनो में' के शेर अच्छे हैं। कंपोजीशन पहाड़ी टच वाली है, अच्छी लगती है। वीडियो में अच्छा ये लगा कि मॉडल नहीं हैं, आम जिंदगी के विजुअल्स हैं।
'आइना सामने रखोगे तो याद आउंगा' की धुन में थोड़ी ताज़गी है।
'कुछ खोकर कुछ पाना' औसत कंपोजीशन है लेकिन एक शेर अच्छा है-
'हिंदू मुस्लिम आते जाते रहते हैं
नुक्कड़ का मयख़ाना अच्छा लगता है'
'दूर तलक वीराना है' में मुखड़े में बैरागी भैरव का इस्तेमाल पकड़ लेता है। धुन अच्छी बन पड़ी है।
'दिन डूबा तुम याद आए' काफ़ी छोटी बहर है, लेकिन धुन अच्छे से संभाली गई है। 'डूबा' दिखाने के लिए जगजीत जी ने खरज का खूबसूरत इस्तेमाल किया है।

वीनस केसरी said...

बहुत बड़ी उपलब्धि हासिल की आपने
आपके लिए मेरे पास एक मिश्रा है
"काट लिया लंबा सफ़र छोटी उम्र में "
हार्दिक बधाई

वीनस केसरी

Pankaj Upadhyay (पंकज उपाध्याय) said...

badhai ho sarkaar!! Wasie meri bhi yahi tamanaa hai dekhiye kab poori hoti hai..

Koti koti Badhaiyan..

श्रद्धा जैन said...

Aapki gazalo.N ko padhti rahi hoon
aapki kitaab Ameen bhi padhi hai aur uske kayi sher padh padh kar sabko sunaye hain aapki muraad ko pura hota dekh kar bahut khushi hui

umeed hai ki jald hi aapki gazlon ka ek pura album haath mein hoga

Meri taraf se hardik subhkamanye sweekar karen.

अमिताभ श्रीवास्तव said...

alokji,
mujhse kese ye blog chhoota raha?? vese blog bhraman jyada nahi kar paane ki vajah he, kintu der aayad durust aayad.../
aapka sapna saakaar hua..// vese bhi gaalib ki zameen bahut upajaau he aour us par virasat se mile lafzo ki khaad fasal ko lahalahaate khet me tabdil karne ki taqat rakhti he, jo me dekh bhi rahaa hoo. badhai swikaar kare.

अनिल कान्त said...

मुबारक हो

Renu goel said...

alok ji ..1 april ke baad se kuch nahin likha ...ab aur kuch naya bhi likiye ...

प्रदीप कांत said...

चांदनी आज किसी लिए नम है,
चांद की आंख में चुभा क्या है।

BEHATAREEN SHER

Asha Joglekar said...

aapka khwab such hua aur kya chahiye aapki gajal hai hee itani khoob surat. Mubarakaen.

latahaya said...

aadaab.Nice gazal.khudaa aapke sab khwaab pure kare.summa aameen.

vikas zutshi said...

< http://www.youtube.com/watch?v=Y1UVgC3A4TA&NR=1 >

Anonymous said...

Slots on the other hand|however|then again} are notoriously recognized for having a high return to participant and slot machines RTP average on 97%. That means they pay again 97% of each dollar that has been positioned on the slot recreation. And just like roulette, quantity of} variants embrace Classic Blackjack, European Blackjack, Spanish 21, and Pontoon. This is one of the|is among the|is doubtless one 토토사이트 of the} important checks throughout every on line casino evaluation. The Referee will get a bonus when he or she registers an account at the on line casino and mentions the Referrer.